Hindi

|| नमुत्थुणं सूत्र || 

नमुत्थुणं सूत्र , शक्रस्तव सूत्र अर्थ

नमुत्थुणं, अरिहंताणं, भगवंताणं        1
आइ-गराणं, तित्थ-यराणं, 
सयं-संबुद्धाणं    2
 
पुरिसुत्तमाणं, पुरिस-सीहाणं,
 पुरिस-वर-पुंडरीआणं,
पुरिस-वर-गंध-हत्थीणं        3
लोगुत्तमाणं, लोग-नाहाणं, लोग-हिआणं,
लोग-पईवाणं, लोग-पज्जोअ-गराणं    4
 
अभय-दयाणं, चक्खु-दयाणं, 
मग्ग-दयाणं,
सरण-दयाणं, बोहि-दयाणं        5
 
धम्म-दयाणं, धम्म-देसयाणं, धम्म-नायगाणं,
धम्म-सारहीणं, धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं    6
 
अप्पडिहय-वर-नाण-दंसण-धराणं, 
वियट्ट-छउमाणं    7
 
जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, 
तारयाणं, बुद्धाणं,
बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं        8
 
सव्वन्नूणं, सव्व-दरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत-
मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं
ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअ-भयाणं    9
 
जे अ अईया सिद्धा, जे अ भविस्संति-णागए काले
संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे ति-विहेण वंदामि    10


शक्र इन्द्र जब तीर्थंकर देव की स्तुति करता है तब दाएँ ढींचण उपर करके , पेट उपर करके पेट पर हाथ की कोणी को रखकर , दो हाथ से कमल के डोडा जैसे आकर करके अंजलि करके यह सूत्र बोलते है। इसलिये इस सूत्र का शक्रस्तव नाम भी है।
शक्र शब्द का अर्थ इन्द्र होता है। परंतु यहाँ वो सौधर्म देवलोक के अधिपति इन्द्र के लिये है। जब महावीर प्रभु प्राणत नाम के 10वे देवलोक में से च्यवन करके माहणकुंड गांव नगर के ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नि देवानंदा की कुक्षी में अवतरते है तब अवधिज्ञान से वो प्रसंग जानकर अत्यंत खुश होतर सौधरमेन्द्र बहुत भक्तिभाव से अपने सिहांसन पर से उतरते है। जिस दिशा में प्रभु है वो दिशा में 7 - 8 कदम आगे आते है। और बहुत ही भक्तिभाव से यह स्तोत्र से वो प्रभु की स्तुति करते है। इसलिये इसे शक्रस्तव के नाम से भी पहेचाना जाता है।
सामायिक क्रिया में जैसे करेमी भंते प्रधान सूत्र है , वैसे चैत्यवंदन की क्रिया में शक्रस्तव - नमुत्थुणं सूत्र प्रधान सूत्र है। यह सूत्र 33 आलापो में है।
इसमें शरुआत में अरिहंत भगवान के अलग - अलग 35 विशेषणों द्वारा स्तुति की गई है। बाद में त्रणेय काल के सिद्ध परमात्मा का मोक्ष का स्वरूप बताते पूर्वक स्तुति की गई है।
यह सूत्र में 1 गाथा , 9 संपदा , 33 गुरु अक्षर , 264 लघु अक्षर और संपूर्ण अक्षर 297 है। यह शाश्वत सूत्र है।
नमोत्थुणं सूत्र (शक्रस्तव)

इस सूत्र का विवेचन करने का अधिकार मुझे, अनुक्रमें, तीसरा, परंतु हाल के समय में, पहला, दूसरा, चौथा और छट्ठा उपधान एक साथ ४७ दिन का उपधान एक साथ करने के बाद, यह दूसरा उपधान ३५ दिन का, करते हुआ, तीन वांचना के अंतर्गत मिला । आज़, मैं, दक्षा मेहता, कोलकाता से, नमुत्थुणं सूत्र के विषय में, जो भी थोड़ा-बहुत समझ पायी हूँ, प्रस्तूत कर रही हूँ। 👇🏻
*दस गाथाओं के नमुत्थुणं सूत्र की शुरुआत होती है, जिसमें, पहली गाथा में, अरिहंत भगवंत को नमस्कार कर के ९ गाथा तक सिर्फ अरिहंत परमात्मा को विशेषण देकर, उनकी स्तुति की जाती है, और यही शक्रेन्द्र भी प्रभु के च्यवन व जन्मकल्याणक के अवसर पर करते आये है, जिस का उल्लेख त्रिषष्ठि सलाका पुरुष में भी है ।*
*"""अंतिम दसवीं गाथा में, सभी सिद्धो को, और सर्व तिर्थंकरों को""" त्रिविधे नमस्कार कर के, वर्तमान काल में, यह सूत्र, सम्पन्न होता है ।*
*""शाश्वत"" की अपेक्षा से, """नमुत्थुणं की ९ गाथा""" ही शाश्वत है, दसवीं गाथा बाद में जोड़ी गई है, ऐसा मानना है, इसीलिए दूसरे उपधान की तीसरी वांचना में, यह दसवी गाथा की संपदा, पद और गुरु- लघु अक्षर को, पूरे सूत्र की कुल संख्या में नहींं जोड़ा जाता है ।*


*नमुत्थुणं सूत्र व अर्थ 👇🏻


पहली संपदा
अर्थ :- *अरिहंत भगवंतो को नमस्कार थाओ ।*


 दूसरी संपदा
अर्थ :-
*धर्म की आदि करनारा, तीर्थ (की स्थापना करनारा), स्वयं बोध पामे हुए, (परमात्मा को मेरा नमस्कार थाओ ।)*

तीसरी संपदा
अर्थ :- *पुरुषो में उत्तम, पुरुषो में सिंह समान, पुरुषोमें उत्तम पुंडरीक समान, पुरुषोमें श्रेष्ठ गंधहस्ति समान (परमात्मा को मेरा नमस्कार थाओ ।)*
*(उपधान की पहली वांचना समाप्त)*

चौथी संपदा
अर्थ :- *लोक में उत्तम, लोक का हित करनारा, लोक को प्रगट करनारा, लोक में प्रकाश करनारा,*

पांचवी संपदा
अर्थ :- *अभय को देनारा, श्रद्धारुप चक्षु को देनारा, मार्ग को बतानेवाले, शरण को देने वाले, बोधि (समकित) रत्न को देनेवाले,*

छट्ठी संपदा
अर्थ :- *धर्म को देनेवाले, धर्म का उपदेश देनेवाले, धर्म के नायक, धर्म के सारथी, चारों गति के अंत करनारे ( उत्तम धर्मचक्र को धारण करनारे) धर्मचक्रवर्तीओं को (मेरा नमस्कार थाओ ।)*
*(उपधान की दूसरी वांचना समाप्त)*


७ संपदा
अर्थ :- *कोई भी जिसे ना हण सकें ऐसे उत्तम केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करनेवाले, छद्मस्थपणा जिनका चला गया है वैसे,*

आठवी संपदा
अर्थ :- *रागद्वेष को जिते हुए और जिताने वाले, संसार समुद्र से तिरे हुए और तिराने वाले, (तत्व) बोध पामे हुए और तत्व बोध पमाडने वाले, कर्म को छोड़े हुए और छुड़वाने वाले,*


नौंवी संपदा
*तृतीय वांचना में यहां तक के ही, पद, संपदा, गुरु-लघु अक्षर लिये जाते है ।*
अर्थ :- *सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, उपद्रवरहित-चलायमान नहींं हो ऐसे रोगरहित अनंतकाल रहेनारे, क्षय नहींं हो ऐसी पीड़ारहित-जहां से वापिस आना नहींं ऐसी एसी सिद्धगति नाम के स्थान को पा लिया हो जिसने, भयों को जिसने जिता है, ऐसे, जिनेश्वर भगवंतो को मैं नमस्कार करता हूँ ।*

दसवी गाथा को संपदा में नहींं गिना जाता है इसीलिए, इसके पद को कुल सूत्र की पद की अपेक्षा से, गिनती में नहींं लिया जाता है।)*
अर्थ :- *भूतकाल में जो सिद्ध हो चूके है, उन्हें, भविष्यकाल में जो सिद्ध होंगे उन्हें, और वर्तमान काल में विचर रहें, ऐसे, सर्व तीर्थंकरों को, मन, वचन,काया से, मैं, नमस्कार करता हूँ ।*
*कब करते है शक्रेन्द्र, शक्रस्तव की स्तुति और कैसे करते है ?*
जब भी प्रभु का *च्यवन या जन्म कल्याणक* होता है, शक्रेन्द्र के *सिंहासन कंपायमान* होते ही उन्हें पता चलता है और वह अपने सिंहासन को, आपनी पादपीठ पादुका वि. को छोड़, जिस तरफ प्रभु है, उस दिशा की और, सात से आठ कदम चलकर, अखण्ड वस्त्र का उतरासंग करते हुए, अपने दक्षिण जानु (बायें घुटने) को आरोपण करके, (सिकोड़कर), और, वामजानु को, (दाहिने घुटने) को भूमि पर टिकाकर *नमुत्थुणं मुद्रा* में, जिसे हम *योगमुद्रा* भी कहते है, और इसी *नमुत्थुणं सूत्र यानी शक्रस्तव के द्वारा, अरिहंत भगवंत के ३६ विशिषणों के साथ, नमुत्थुणं सूत्र, जिसकी ९ गाथा शाश्वत है, वह स्तुति करते है। (दसवीं गाथा को बाद में जोड़ा गया है)*,
*त्रिशष्टिसलाका में भी, शक्रस्तव स्तुति करते समय की, अरिहंत प्रभु के विशेषणों की स्तुति का ही वर्णन है ।* उसके बाद अपने मस्तक को भूमि पर लगाकर, तीन बार वंदन करते है और यही भाव तब वह भाते है कि, भगवान को वंदन करता हूँ, वहाँ स्थित भगवान मुझे देखें ।
*तो ऐसे, नमुत्थुणं सूत्र के माध्यम से, हम भावपूर्वक अरिहंत परमात्मा की विशषणपूर्वक भक्ति करते हुए, नमस्कार करते है ।*
*जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो मन, वचन, काया से, त्रिविधे, मिच्छामी दुक्कड़ं*।

English

 Namuththunam Sutra

Meaning

NAMUTTHU NAM, ARIHANTANAM, BHAGAVANTANAM    1
AI-GARANAM, TITTHA-YARANAM,
SAYAM-SAMBUDDHANAM    2
 
 
PURISUTTAMANAM, PURISA-SIHANAM, 
PURISA-VARA-PUNDARIANAM, 
PURISA-VARA-GANDHA-HATTHINAM    3
 
LOGUTTAMANAM, LOGA-NAHANAM, 
LOGA-HIANAM,
LOGA-PAIVANAM, LOGA-PAJJOA-GARANAM    4
 
ABHAYA-DAYANAM, 
CAKKHU-DAYANAM, MAGGA-DAYANAM,
SARANA-DAYANAM, BOHI-DAYANAM    5
 
DHAMMA-DAYANAM, DHAMMA-DESAYANAM,
DHAMMA-NAYAGANAM, DHAMMA-SARAHINAM,
DHAMMA-VARA-CAURANTA-CAKKAVATTINAM    6
 
APPADIHAYA-VARA-NANA-DANSANA-DHARANAM,VIYATTA-CHAUMANAM    7
 
JINANAM, JAVAYANAM, TINNANAM, TARAYANAM, BUDDHANAM,
BOHAYANAM, MUTTANAM, MOAGANAM    8
 
SAVVANNUNAM, SAVVA-DARISINAM,
 SIVA-MAYALA-MARUA-MANANTA-MAKKHAYA-MAVVABAHA-MAPUNARAVITTI
SIDDHIGAI-NAMADHEYAM 
THANAM SAMPATTANAM,
NAMO JINANAM, JIA-BHAYANAM    9
 
JE A AIYA SIDDHA, 
JE A BHAVISSANTI-NAGAE KALE
SAMPAI A VATTAMANA, 
SAVVE TI-VIHENA VANDAMI    10


My obeisance:
To the Arihants and the Bhagavants
 
To the beginners of scriptural knowledge, establishers of the tirth (four fold community of monks, nuns, male and female laity) and attainers of self-enlightenment.
 
To the best amongst all humans, totally fearless amongst all humans, most beautiful like a white lotus amongst all humans, best amongst all humans like a superior elephant
 
To the best amongst all in the universe, the masters of the universe, benefactors of the universe, like a lamp in the universe and illuminators in the entire universe
 
To bestowers of fearlessness, right vision, guides to follow the right path, granters of shelter and protection, bestowers of the seed of right faith to attain liberation
 
To bestowers of religiousness and path of right conduct, preachers of the spiritual principles & tenets, leaders of the religion, charioteers of religion and spiritual emperors who bestow the best religion (analogous to a disk) which can destroy the four states of all living beings (heavenly beings, human beings, animal / plant beings, hellish beings).
To holders of indestructible absolute knowledge and vision devoid of incompleteness
To those who have conquered their karmas and helps others to conquer them
To those who have crossed the worldly ocean of birth and death and helps others to cross it
To those who have achieved perfect knowledge (omniscience) and helps others to attain it
To those who have achieved liberation (salvation) and helps others to achieve it
To those who have infinite knowledge, infinite vision, having reached the ultimate place of well being, steady, free from any diseases, ever lasting, imperishable, free from disturbance and free from re-birth which is called Siddha Gati. Obiesance to the Jineswaras who have conquered their fear.
To all the Arihants of the past, present and future I give my obeisance in three ways (by mind, speech and body).

Gujrati

|| નમુત્યુણં સૂત્ર ||

ગાથાર્થ


નમુત્યુણં અરિહંતાણં ભગવંતાણં ૧.
આઈગરાણં તિત્થયરાણં સંસંબુદ્ધાણં, ર.
પરસુતમાણ પસ સિહાણં,
પુરિસ વર પુંડરિઆણં, પુરિસ વર-ગંધહત્થીણં ૩.
લોગુત્તમાણં, લોગનાણણં, લોગહિયાણં,
લોગપઇવાણં, લોગપજજોઅગરાણં, ૪.
અભયદ્યાણં, ચક્ખુદ્યાણં, મગ્ગદયા્ણં,
સરણદ્યાણં, બોહિધ્યાણં, પ.
ધમ્મધયાણં, ધમમદેસયાણં ધ્મનાયગાણં ધમ્મસારહીણં,
ધમ્મવર ચાઉરંત - ચક્કવટ્ટીણ ૬.
અપપડિહિય વર - નાણ - દંસણધરાણં,
વિયટ્ટ - છઉમાણં, ૭.
જિણાણં જાવયાણં, તિન્નાણં તારયાણં,
બુદ્ધાણં બોણ્યાણં, મુત્તાણં મોઅગાણં ૮.
સવ્વન્નૂણં, સવ્વદરિસીણં સિવ - મયલ - મ૩અ - મણંત-મકખય -
મવ્વાબાહ - મપુણરાવિત્તિ - સિદ્ધિગઇ -નામધેયં ઠાણં સંપત્તાણં,
નમો જિણાણં, જિયઅભયાણં. ૯.
જે અ અઈઆ સિદ્ધ જે અ ભવિસ્સંતિણાગએ કાલે;
સંપ અ વટ્ટમાણા, સવવે તિવિહેણ વંદામિ ૧૦.

નમસ્કાર થાઓ અરિહંતોને, ભગવંતોને. શ્રુત આદિ ધર્મનો આરંભ કરનારાઓને, તીર્થંકરોને, સ્વયંજ્ઞાન પામેલાને. પુરુષોમાં ઉત્તમ છે તેમને, પુરુષોમાં સિંહસમાન શૂરવીરોને, પુરુષોમાં ઉત્તમ કમળ સમાન નિર્લેપ છે તેમને, પુરુષોમાં શ્રેષ્ઠ ગંધહાથી સમાન ઉપદ્રવોને દૂર કરનારાઓને. લોકમાં ઉત્તમ છે તેમને, લોકોના નાથોને, લોકોનું હિત કરનારાઓને, લોકમાં પ્રકાશ કરનારા મહાદીપકોને, લોકમાં પ્રધોત(અતિશય તેજ) ફેલાવનારાઓને.
અભય આપનારાઓને, સમ્યગજ્ઞાન રૂપી ચક્ષુ આપનારાઓને, મોક્ષેનો માર્ગ બતાવનારાઓને, શરણ આપનારાઓને બોધિ બીજ(સમ્યક્ત્વ) આપનારાઓને. ચારિત્રધર્મ આપનારાઓને, ધર્મની દેશના આપનારાઓને, ધર્મના નાયકોને, ધર્મરૂપી રથના સારથીઓને, ચારગતિનો અંત કરનાર શ્રેષ્ઠ ધર્મચક્ર ધારણ કરનારા ચક્રવર્તિઓને. કોઈથી હણાય નહિ એવા ઉત્તમ કેવળજ્ઞાન અને કેવલ દર્શનનાધારકોને, જેમનું છદ્મસ્થ(પૂર્ણ અજ્ઞાન) પણું ચાલ્યું ગયું છે તેમને .
રાગદ્વેષને જીતનારાઓને તથા ઉપદેશ વડે બીજાઓને જિતાવનારાઓને, સમ્યગદર્શન વડે ભવસમુદ્ર તરી ગયેલાઓને તથા બીજાઓને તારનારાઓને, તત્વજ્ઞાન જાણનારાઓને તથા બીજાઓને તત્વબોધ કરાવનારાઓને, સર્વ કર્મરૂપી બંધનથી મુક્ત થયેલાઓને તથા અન્યને મુક્ત કરાવનારાઓને.
સર્વજ્ઞોને, સર્વ જોઈ શકનારાઓને, ઉપદ્રવોથી રહિતમ સ્થિર, વ્યાધિ-વેદનાથી રહિત, અંતરહિત, કદાપિ ક્ષય ન થાય તેવા, કર્મજન્ય પીડાઓથી રહિત, જ્યાં ગયા પછી સંસારમાં પાછું ફરવાનું હોતું નથી તેવા, સિદ્ધિગતિ નામના સ્થાનને જેમણે પ્રાપ્ત કર્યું છે તેમને, જેમણે સાતેય પ્રકારના ભયને જીત્યા છે તેવા જિનોને નમસ્કાર થાઓ. જેઓ ભૂતકાળમાં સિદ્ધ થયા છે જેઓ ભવિષ્યકાળમાં સિદ્ધ થનારા છે, અને જેઓ વર્તમાનકાળમાં અરિહંતરૂપે વિધમાન છે તે સર્વેને મન, વચન, કયાથી એમ ત્રણે પ્રકારે હું વંદન કરું છું.
ભાવાર્થ:
દેવોને અધિપતિ ઇન્દ્રો આ સૂત્રથી અરિહંત ભગવંતો તથા સિદ્ધગતિને પામેલા સર્વ ત્રણે કાળના જિનેશ્વરો તથા સિદ્ધ ભગવંતોને અનેક વિશેષણો પૂર્વક વંદન કરે છે તેથી તેનું બીજું નામ શક્રસ્તવ છે.


खमासमण सूत्र

इच्छामि खमा-समणो! वंदिउं, जावणिज्जाए
निसीहिआंए, मत्थएण वंदामि ......१

गाथार्थ - खमासमण सूत्र

हे क्षमावान साधु महाराज! आपको मैं शक्ति के अनुसार पापमय प्रवृत्तियोें को त्याग कर
वंदन करना चाहता हूं. मैं मस्तक (आदि पांच अंगो) से वंदन करता हुं......१

ज्ञान के पांच खमासमण

  1. मति ज्ञान:- समकित श्रध्धावंतने उपन्यो ज्ञान प्रकाश प्रणमुं पदकज तेहना भाव धरी उल्लास
    “ॐ ह्रीं श्री मतिज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

  2. श्रुत ज्ञान :-  पवयण श्रुत सिद्धांत ते आगम समय वखाण पूजो बहुविध रागथी, चरण कमल चित आण
    “ૐ ૐ श्री श्रुतनयनाय नमो नम:”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

  3. अवधि ज्ञान :- उपन्यो अवधिज्ञान नो, गुण जेहने अविकार वंदना तेहने मारी, श्वासे मांहे सो वार।
    “ॐ ह्रीं श्री अवधिज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि।

  4. मनः पर्यव ज्ञान :- ए गुण जेहने उपन्यो, सर्वविरति गुणठाण प्रणमुं हितथी तेहना, चरण करण चित्त आण
    “ॐ ह्रीं श्री मनः पर्यवज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

  5. केवल ज्ञान :- केवल दंसण नाणनो, चिदानंद धनतेज ज्ञानपंचमी दिन पूजिये, विजयलक्ष्मी शुभ हेज
    “ॐ ह्रीं श्री केवलज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

ખમાસણા સૂત્ર

ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ
નિસિહિઆએ મર્ત્યએણ વંદામિ.

ગથાર્થ - ખમાસણા સૂત્ર

હે ક્ષમાશીલ ઋષિ મહારાજ ! હું તમને તમારી શક્તિ પ્રમાણે તમારી પાપી વૃત્તિઓ છોડી દઈશ.
મારે પૂજા કરવી છે. હું મારા માથા (અને શરીરના અન્ય પાંચ અંગો) વડે પૂજા કરું છું...1

જ્ઞાન ના પાંચ ખમાસણા

  1. મતિ જ્ઞાન :- સમકિત શ્રધ્ધાવંતને ઉપન્યો જ્ઞાન પ્રકાશ પ્રણમું પકજ તેહના ભાવ ધરી ઉલ્લાસ
    “ૐ હ્રીં શ્રી મતિજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મર્ત્યએણ વંદામિ.
  2. શ્રુત જ્ઞાન :- પવયણ શ્રુત સિદ્ધાંત તે આગમ સમય વખાણ પૂજો બહુવિધ રાગથી, ચરણ કમલ ચિત આણ
    “ૐ હીં શ્રી શ્રુતજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મર્ત્યએણ વંદામિ.

  3. અવધિ જ્ઞાન :- ઉપન્યો અવધિજ્ઞાન નો, ગુણ જેને અવિકાર વંદના તેહને મારી, શ્વાસે માંહે સો વાર 
    “ૐ હીં શ્રી અવધિજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઈચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મત્થએણ વંદામિ.

  4. ન:પર્યવ જ્ઞાન :- એ ગુણ જેને ઉપન્યો, સર્વવિરતિ ગુણઠાણ પ્રણમું હિતથી તેહના, ચરણ કરણ ચિત્ત આણ
    “ૐ હીં શ્રી મનઃ પર્યવજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઈચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મત્થએણ વંદામિ.

  5. કેવળ જ્ઞાન :-  કેવલ હંસણ નાણનો, ચિદાનંદ ધનતેજ જ્ઞાનપંચમી દિન પૂયેિ, વિજયલક્ષ્મી શુભ હેજ
    “ૐ હીં શ્રી કેવલજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મત્થએણ વંદામિ.

KHAMASAMANA SUTRA

icchämi khamä-samano ! vandium,
jävanijjäe nisihiäe, matthaena vandämi.1.

MEANING - KHAMASAMANA SUTRA

This Sutra is also known as Panchäng Pranipät Sutra. 
Different sects recite different sutras when one bows to the Tirthankar image or an Ascetic.
This Sutra is recited while offering obeisance to Tirthankar image at the temple
or to the monks and nuns in a specific posture wherein the five body parts, namely two hands,
two knees and the forehead, touch the floor together. Hence it is known as Panchäng Pranipät Sutra.
This sutra is recited three times in front of a Tirthankar image at the temple
or two times in front of an ascetic at an Upäshray (temporary living place for monks)

Utility :-  By this sootra salutation are made to the Deva and Guru. Deva means Jineshwara Bhagwana and Guru means Jaina monks who never keep any money any woman with them . Three Khamasamanas are offered to the Deva and two Khamasamanas are offered to the Guru Maharaja. Obeisance is done by bowing the five limbs viz. two hands, two feet and the head.

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