Hindi

|| करेमि भंते सूत्र || 

"करेमि भंते" सूत्र का अर्थ है

करेमि भंते !
सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि,
जाव नियमं पज्जुवासामि,
दुविहं, ति-विहेणं,
मणेणं, वायाए, काएणं,
न करेमि, न कारवेमि, तस्स भंते !
पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि. . .1.

हे भगवंत! मैं "सामायिक" करता हूँ उसमें पाप का पच्चक्खान करता हूँ. जब तक नियम में हूँ, तब तक मन, वचन और काय से कोई पाप कार्य करूँगा नहीं और कराऊंगा नहीं. भूतकाल में किये गए पापों से में पीछे हटता हूँ (Feeling really very sorry), उस कार्य की निंदा करता हूँ और उस पाप करने वाली "आत्मा" का त्याग करता हूँ. दीक्षा लेते समय यही सूत्र "तीर्थंकर" सिध्दों को साक्षी रखकर खुद ही कहते हैं, क्योंकि तीर्थंकर "स्वयंबुद्ध" होते हैं, उनके "प्रत्यक्ष” गुरु कोई नहीं होते. दीक्षा लेते समय यही सूत्र दीक्षार्थी कहता है गुरु के समक्ष. क्या ये "आश्चर्य" नहीं है कि यही सूत्र सभी श्रावकों को दे दिया गया है! क्या हमें ये अधिकार मिलना चाहिए था?

English

|| जगचिंतामणि सूत्र || 

Meaning

इच्छ्कारेण संदिसह भगवन् !
चैत्यवंदन करुं ?
इच्च्छं , जग चिंतामणि !
जगनाह ! जगगुरु !
जगरक्खण ! जगबंधव !
जगसत्थवाह जगभाव-विअक्खण !
अट्ठावय संठविअ रुव !
कम्मट्ठ वीणासण ! चउवीसं पि जिणवर !
जयंतु अप्पडिहय सासण .......१

कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं
पढम संघयणि
उक्कोसय सत्तरिसय ,
जिणवराण विहरंत लब्भइ,
नवकोडिहिं केवलिण
कोडि सहस्स नव साहु गम्मइ ,
सपइ जिणवर वीस, मुणि
बिहूं कोडिहिं वरनाण ,
समणह कोडि सहस्स दुअ,
थुणिज्जइ निच्च विहाणी.........२
 
जयउ सामिय ! जयउ सामिय !
रिसह सत्तुंजि , उज्ज़िंति पहु नेमिजिण !
जयउ वीर ! सच्चउरिमंडण !
भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय !
मुहरिपास ! दुह दुरिअखंडण !
अवर विदेहिं तित्थयरा,
चिहूं दिसि विदिसि जिं के वि ,
तीआणागय संपई अ, वंदु जिण सव्वे वि ......३
 
सत्ताणवइ सहस्सा,
लक्खा छप्पन्न अट्ठ कोडिओ,
बत्तीस-सय बासियाइं, तिअलोए चेइए वंदे,.....4
 
पनरस कोडिसयाइं,
कोडि बायाल लक्ख अडवन्ना,
छत्तीस सहस्स असीइं
सासय बिंबाइं पणमामि.......5



जो भी मनुष्य "अष्टापद तीर्थ" की यात्रा खुद के बलबूते (लब्धि) से कर लेता है वह उसी भव में मुक्त हो जाता है"- भगवान महावीर के ये वचन सुनकर श्री गौतम स्वामी अपनी लब्धि से "सूर्य" की "किरणों" के सहारे "अष्टापद" पर्वत पर आकाश मार्ग से पहुंचे.
अष्टापद तीर्थ पर 1500 "तापस" अपनी तपस्या के जोर से सिद्धि प्राप्त करते हुवे कुछ सीढ़िया चढ़ सके थे, परन्तु और ऊपर पहुँचने में खुद को असहाय पा रहे थे. (एक एक सीढ़ी 1 योजन ऊँची थी, इसलिए).
श्री गौतम स्वामी की लब्धि को देखकर वे आश्चर्य चकित हुवे जब उन्होंने बड़े आराम से तीर्थ के दर्शन कर लिए.
जिन मंदिरों के दर्शन की महत्ता यहाँ पर सिद्ध हो जाती है- अष्टापद तीर्थ पर चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियां उन के शरीर के माप के अनुसार ही श्री भारत चक्रवर्ती ने भरवाई हैं और सभी तीर्थंकरों की नासिका एक ही सीध में है. क्योंकि सभी के शरीर का माप एक सा नहीं था, इसलिए स्थापना के समय जमीन से "ऊंचाई" एडजस्ट करके सभी की नासिका एक ही सीध में रहे, ऐसा किया गया).
सभी ने श्री गौतम स्वामी को अपना "गुरु" बनाने का निर्णय किया. पर गौतम स्वामी ने कहा "मेरे भी गुरु हैं" - उन्हीं के पास चलो. जाने से पहले सभी 1500 तापसों को "तत्त्व" समझाकर दीक्षा दी और अपनी लब्धि से परमान्न" (खीर) का पारणा करवाया.
उसी "अष्टापद तीर्थ" पर श्री गौतम स्वामीजी ने "जगचिन्तामणि" चैत्यवंदन सूत्र की रचना की है.
किसी पहाड़ पर तीर्थ के जब हम दर्शन करने जाते हैं, तो हमारे "भाव" खूब ऊँचे होते हैं. फिर गौतम स्वामी जी द्वारा ऐसे दुर्गम तीर्थ पर चढ़कर दर्शन करना जिससे उसी भव में "मोक्ष" की "गारंटी" हो गयी हो और फिर वहीँ "जग चिंतामणि" चैत्यवंदन सूत्र की रचना करना - तो उसका "प्रभाव" कितना अधिक होगा!
अष्टापद तीर्थ” पर "जग चिंतामणि" सूत्र की रचना करते समय उन्हें "पालिताना" के श्री आदिनाथ भगवान याद आये, "गिरनार" तीर्थ के श्री नेमिनाथ भगवान याद आये, "भरुच” के श्री मुनिसुव्रतस्वामी याद आये, "टिन्टोइ" के श्री पार्श्वनाथ भगवान याद आये और "सांचोर" के श्री महावीर स्वामी याद आये. इससे हम इस सूत्र की ही नहीं, इन सब तीर्थ स्थानों की भी महिमा समझ सकते हैं.
इसी स्तोत्र में वो आगे बात करते हैं अपने मन के उत्कृष्ट भावों की :
१. तीनों लोकों में स्थित 8,57,00,282 जिन मंदिरों को प्रणाम करता हूँ. २. जगत में 15,42,58,36,080 शाश्वत प्रतिमाओं को प्रणाम करता हूँ.
ऐसे उत्कृष्ट भाव वाला सूत्र हमारे आचार्यों ने 2500 वर्षों से संभालते हुवे हमें दिया है, जिसका उच्चारण करने मात्र से हम इतने करोड़ जिन मंदिरों और अरबों प्रतिमाओं को ये सूत्र बोलने मात्र से नमस्कार कर पाते हैं.
क्या अब भी हम "रोज" जैन मंदिर के प्रत्यक्ष दर्शन करने के लिए नहीं जाना चाहेंगे?
 
आज साधू मार्गी इस अद्भुत सूत्र को ही "अमान्य" कर बैठे हैं क्योंकि ये सूत्र उनकी "मान्यता" से मेल नहीं खाता. इसलिए उनके भक्त इस सूत्र से होने वाले विशिष्ट लाभ से वंचित हैं.
ये सूत्र बड़ा रहस्यमयी है. सिर्फ ऊपर ऊपर पढ़ने से उन रहस्यों का पता नहीं पड़ेगा.
कभी भरी सभा में इन रहस्यों को प्रकट करूंगा.

Gujrati

|| કરેમિ ભંતે સૂત્ર ||

ગથાર્થ

કરેમિ ભંતે ! સામાઇયં સાવજ જોગં પચ્ચક્ખામિ, જાવ નિયમં પજ્જુવાસામિ, દુવિહં, તિ-વિહેણં, મણેણં, વાયાએ, કાએણં, ન કરેમિ, ન કારવેમિ, તસ્સ નિંધધ્ધિ' પડિક્કમામિ, નિદામિ, ગરિહામિ ડાયર ભંતે ! , અપ્પાણં વોસિરામિ. .1.

કરેમિ ભંતે-આ સૂત્રમાં સામાયિક ગ્રહણ કરવાની મહા- પ્રતિજ્ઞા છે. સામાયિક લઈને પાપનું કામ નિંદા, વિકથા ન કરવી પણ ધર્મનું ભણવું, વાંચવું, ભણેલું સંભારવું, નવકારવાલી ગણવી વગેરે કરવું. સામાયિક એટલે સમતાનો લાભ થાય તે; અથવા બંઘાયેલાં જૂનાં કર્મોનો નાશ થાય અને નવાં બંઘાતાં કર્મો અટકી જાય એવી ૪૮ મિનિટની જ્ઞાનીઓએ બતાવેલી ક્રિયા.

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खमासमण सूत्र

इच्छामि खमा-समणो! वंदिउं, जावणिज्जाए
निसीहिआंए, मत्थएण वंदामि ......१

गाथार्थ - खमासमण सूत्र

हे क्षमावान साधु महाराज! आपको मैं शक्ति के अनुसार पापमय प्रवृत्तियोें को त्याग कर
वंदन करना चाहता हूं. मैं मस्तक (आदि पांच अंगो) से वंदन करता हुं......१

ज्ञान के पांच खमासमण

  1. मति ज्ञान:- समकित श्रध्धावंतने उपन्यो ज्ञान प्रकाश प्रणमुं पदकज तेहना भाव धरी उल्लास
    “ॐ ह्रीं श्री मतिज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

  2. श्रुत ज्ञान :-  पवयण श्रुत सिद्धांत ते आगम समय वखाण पूजो बहुविध रागथी, चरण कमल चित आण
    “ૐ ૐ श्री श्रुतनयनाय नमो नम:”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

  3. अवधि ज्ञान :- उपन्यो अवधिज्ञान नो, गुण जेहने अविकार वंदना तेहने मारी, श्वासे मांहे सो वार।
    “ॐ ह्रीं श्री अवधिज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि।

  4. मनः पर्यव ज्ञान :- ए गुण जेहने उपन्यो, सर्वविरति गुणठाण प्रणमुं हितथी तेहना, चरण करण चित्त आण
    “ॐ ह्रीं श्री मनः पर्यवज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

  5. केवल ज्ञान :- केवल दंसण नाणनो, चिदानंद धनतेज ज्ञानपंचमी दिन पूजिये, विजयलक्ष्मी शुभ हेज
    “ॐ ह्रीं श्री केवलज्ञानाय नमो नमः”
    ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |

ખમાસણા સૂત્ર

ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ
નિસિહિઆએ મર્ત્યએણ વંદામિ.

ગથાર્થ - ખમાસણા સૂત્ર

હે ક્ષમાશીલ ઋષિ મહારાજ ! હું તમને તમારી શક્તિ પ્રમાણે તમારી પાપી વૃત્તિઓ છોડી દઈશ.
મારે પૂજા કરવી છે. હું મારા માથા (અને શરીરના અન્ય પાંચ અંગો) વડે પૂજા કરું છું...1

જ્ઞાન ના પાંચ ખમાસણા

  1. મતિ જ્ઞાન :- સમકિત શ્રધ્ધાવંતને ઉપન્યો જ્ઞાન પ્રકાશ પ્રણમું પકજ તેહના ભાવ ધરી ઉલ્લાસ
    “ૐ હ્રીં શ્રી મતિજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મર્ત્યએણ વંદામિ.
  2. શ્રુત જ્ઞાન :- પવયણ શ્રુત સિદ્ધાંત તે આગમ સમય વખાણ પૂજો બહુવિધ રાગથી, ચરણ કમલ ચિત આણ
    “ૐ હીં શ્રી શ્રુતજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મર્ત્યએણ વંદામિ.

  3. અવધિ જ્ઞાન :- ઉપન્યો અવધિજ્ઞાન નો, ગુણ જેને અવિકાર વંદના તેહને મારી, શ્વાસે માંહે સો વાર 
    “ૐ હીં શ્રી અવધિજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઈચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મત્થએણ વંદામિ.

  4. ન:પર્યવ જ્ઞાન :- એ ગુણ જેને ઉપન્યો, સર્વવિરતિ ગુણઠાણ પ્રણમું હિતથી તેહના, ચરણ કરણ ચિત્ત આણ
    “ૐ હીં શ્રી મનઃ પર્યવજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઈચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મત્થએણ વંદામિ.

  5. કેવળ જ્ઞાન :-  કેવલ હંસણ નાણનો, ચિદાનંદ ધનતેજ જ્ઞાનપંચમી દિન પૂયેિ, વિજયલક્ષ્મી શુભ હેજ
    “ૐ હીં શ્રી કેવલજ્ઞાનાય નમો નમઃ”
    ઇચ્છામિ ખમાસમણો, વંદિઉં જાવણીજ્જાએ નિસિહિઆએ મત્થએણ વંદામિ.

KHAMASAMANA SUTRA

icchämi khamä-samano ! vandium,
jävanijjäe nisihiäe, matthaena vandämi.1.

MEANING - KHAMASAMANA SUTRA

This Sutra is also known as Panchäng Pranipät Sutra. 
Different sects recite different sutras when one bows to the Tirthankar image or an Ascetic.
This Sutra is recited while offering obeisance to Tirthankar image at the temple
or to the monks and nuns in a specific posture wherein the five body parts, namely two hands,
two knees and the forehead, touch the floor together. Hence it is known as Panchäng Pranipät Sutra.
This sutra is recited three times in front of a Tirthankar image at the temple
or two times in front of an ascetic at an Upäshray (temporary living place for monks)

Utility :-  By this sootra salutation are made to the Deva and Guru. Deva means Jineshwara Bhagwana and Guru means Jaina monks who never keep any money any woman with them . Three Khamasamanas are offered to the Deva and two Khamasamanas are offered to the Guru Maharaja. Obeisance is done by bowing the five limbs viz. two hands, two feet and the head.