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।। इच्छकार सुत्र ।। | अर्थ संकलन |
- सुगुरू - सुखशाता पृच्छा - ( गुरू निमंत्रण सुत्र ) इच्छकार ! सुह राई ? ( सुह देवसि ? ) सुख तप ? शरीर निराबाध ? सुख संयम यात्रा निर्वहो छो जी ? स्वामी शाता छे जी ? भात पाणी नो लाभ देशो जी। (यहा गुरु उत्तर देवें कि -'देव - गुरु - पसाय' यह सुनकर शिष्य कहें - भात पानी का लाभ देना जी !! | शिष्य गुरु को सुख-शाता पूछता है, वह इस प्रकार है- इच्छकार- हे गुरो ! आपकी इच्छा हो तो पुंछू ? सुह-राई ? - गत रात्री आपकी इच्छा - के अनुकूल सुख-पूर्वक व्यतीत हुई ? अथवा सुह - देवसि ? गत दिवस आपकी इच्छा के अनुकुल व्यतीत हुआ ? सुख - तप - आपकी तपश्चर्या सुख-पूर्वक होती है ? शरीर - निराबाध- आपका शरीर पीड़ा रहित है ? सुख - संजम-यात्रा निर्वहो हो जी ? तथा हे गुरो ! आपकी संयम - यात्रा का निर्वाह सुख - पूर्वक होता है ? हे स्वामिन् ! आपको सर्व प्रकार की शाता है ? (गुरु कहते है - 'देव और गुरु की कृपा से सब वैसा ही है;' अर्थात सुख-शाता है । शिष्य इस समय अपनी हार्दिक अभिलाषा व्यक्त करता है -) 'मेरे यहाँ से आहार पानी ग्रहणकर मुझ को धर्मलाभ देने की कृपा करें। गुरु इस आमन्त्रण को स्वीकार अथवा अस्वीकार न करके कहते है - वर्तमान योग - जैसी उस समय की अनुकूलता गुरू को सुख - शाता पूछने के लिए इस सुत्र का उपयोग होता है । उसमे प्रथम यह पूछा जाता है कि हे गुरूवर ! रात्री सुखपूर्वक व्यतित हुई ? अर्थात आपने जो रात्री बिताई , उसमे किसी प्रकार की अशान्ति तो नहीं हुई ? यदि वन्दन दिन के बारह बजे के पश्चात किया हो तो राई के स्थान पर दिवस बोला जाता है , जिसका अर्थ यह है कि आपने जो दिवस बिताया उसमे किसी प्रकार की अशान्ति तो नहीं हुई ? दुसरा प्रश्न यह पूछा जाता है कि आप जो तपश्रर्या कर रहे हैं , उसमे किसी प्रकार का विघ्न तो नही आता ?तीसरा प्रश्न यह पूछा जाता है किआपका शरीर पीडा रहित तो है ?अर्थात छोटी बडी कोई व्याधि पीडा तो उत्पन्न नही करती ? और चौथा प्रश्न यह पूछा जाता है कि चारित्र का पालन सुख पूर्वक कर सकते हैं ? इन प्रश्नों को पूछने का कारण यह है कि गुरू को तप संयम आदि की आराधना करने मे किसी भी प्रकार की कठिनाई होती हो तो उपयोगी होना । तदनन्तर गुरू को आहार पानी के लिए निमंत्रण देने मे आता है , किन्तु गुरू अपना साधु धर्म विचारकर ‘वर्तमान योग ‘ अर्थात ‘जैसा उस समय का संयोग ‘ ऐसा उत्तर देते है । प्रातः काल में देववंदन करके गुरु के दर्शन करना जाना चाहिये। वो समय दो खमासमणे देकर गुरु के सामने हाथ जोड़कर खड़े रहेना चाहिये। श्री रत्नशेखरसूरि महाराज ने श्राद्धविधि प्रकरण की टीका में लिखा है कि , बाद में साधु के निर्वाह के बारे में पूछना चाहिये कि हे स्वामी ! आप की संयम यात्रा सुख पूर्वक हो रही है ? पिछली रात भी सुख पूर्वक व्यतीत हुई है ? आपके शरीर में कोई व्याधि नही है ? है भगवन ! आप श्री की इच्छा अनुसार अचित्त निर्दोष ऐषणीय ( ग्रहण करने योग्य ) ऐसे अशन , पान , खाध , स्वाध ऐसे आहार , वस्त्र प्रतिग्रह ( पात्र ) , कंबल , रजोहरण , प्रतिहारि , पीठ ( आसन ) , फलक , शय्या , औषध स्वीकार ने का अनुग्रह करना। नोट : सुबह 12 बजे तक " सुहराई " कहना , बाद में दोपहर 12 बजे के बाद " सुहदेवसि " कहना। |
|| ICCHAKÄRA SUTRA || | Meaning : |
ICCHAKÄRA SUHA-RÄI? (SUHA-DEVASI?) SUKHA-TAPA? SARIRA-NIRÄBÄDHA? SUKHA-SANJAMA-YÄTRÄ- NIRVAHATE HO JI? SVÄMI ! SÄTÄ HAI JI? ÄHÄRA-PÄNI KÄ LÄBHA DENÄ JI..1. | Oh! Guruji! With your permission I very kindly wish to know, if you were comfortable during last night (or day)? Is your penance going well? Are you free of any bodily inflictions? Is your journey in ascetic life free of obstacles? Oh! Guruji, are you doing well? Please kindly oblige me by accepting my alms. Note : Suharai is said before noon and suhadevsi is said after noon(12.00 pm) |
।। ઈચ્છકાર સૂત્ર ।। | અર્થ: |
ઈચ્છાકાર! સુહ-રાઈ? (સુહ-દેવસિ?) સુખતપ? શરીર નિરાબાધ? સુખ સંયમ યાત્રા નિર્વહો છો જી? સ્વામી! શાતા છે જી? ભાત પાણીનો લાભ દેશો જી. મત્થએણ વંદામિ. | સામાન્ય રીતે પ્રાતઃ કાળમાં દેવવંદન કરીને ગુરુના દર્શને કરવા જવું જોઈએ. તે વખતે ઉચિત સાચવીને બે ખમાસમણ પ્રાણિપાત કરીને ગુરુની સમક્ષ હાથ જોડીને ઊભા રહેવું જોઈએ. શ્રી રત્નશેખરસૂરિએ શ્રાદ્ધવિધિ પ્રકરણની ટીકામાં જણાવ્યું છે કે , પછી સાધુના કાર્યના નિર્વાહ સંબંધમાં પૂછે કે હે સ્વામી ! આપની સંયમ યાત્રા સુખે વર્તે છે ? અને ગઈ રાત્રિ સુખ પૂર્વક વ્યતીત થઈ ? આપના શરીરમાં કોઈ વ્યાધિ તો નથી ને ? હે ભગવન ! આપ શ્રી ની ઈચ્છા પ્રમાણે અચિત્ત નિર્દોષ એષણીય ( ગ્રહણ કરવા યોગ્ય ) એવા અશન , પાન , ખાધ , સ્વાધ એવા આહાર વડે તથા વસ્ત્ર પ્રતિગ્રહ ( પાત્ર ) , કંબલ , રજોહરણ વડે , પ્રતિહારિ , પીઠ ( આસન ) , ફલક , શય્યા વડે તથા ઔષધ સ્વીકારવા વડે અનુગ્રહ કરવો. નોટ: સવાર 12 વાગ્યા સુધી "સુહરાઇ" કહેવું અને સવારે 12 વાગ્યા પછીબપોરે " સુહદેવસિ" કહેવું. તે પ્રમાણે સુખશાતા પૂછવી |
मति ज्ञान:- समकित श्रध्धावंतने उपन्यो ज्ञान प्रकाश प्रणमुं पदकज तेहना भाव धरी उल्लास
“ॐ ह्रीं श्री मतिज्ञानाय नमो नमः”
ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |
श्रुत ज्ञान :- पवयण श्रुत सिद्धांत ते आगम समय वखाण पूजो बहुविध रागथी, चरण कमल चित आण
“ૐ ૐ श्री श्रुतनयनाय नमो नम:”
ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि |
अवधि ज्ञान :- उपन्यो अवधिज्ञान नो, गुण जेहने अविकार वंदना तेहने मारी, श्वासे मांहे सो वार।
“ॐ ह्रीं श्री अवधिज्ञानाय नमो नमः”
ईच्छामि खमासमणो, वंदिउं जावणीज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि।
Utility :- By this sootra salutation are made to the Deva and Guru. Deva means Jineshwara Bhagwana and Guru means Jaina monks who never keep any money any woman with them . Three Khamasamanas are offered to the Deva and two Khamasamanas are offered to the Guru Maharaja. Obeisance is done by bowing the five limbs viz. two hands, two feet and the head.